Monday, December 5, 2016

न्यायालय की अवमानना


बचपन में जब से होश संभाला स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस का कोई कार्यक्रम ऐसा नहीं गया जिसमें मेरा देश प्रेम पर भाषण या गीत ना होता हो ,
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का परिवार था,
पढ़ाई पूरी कर के देश सेवा का फैसला लिया ,
शादी के एक महीना बाद पत्नी के साथ बस्तर के जंगल में एक पेड़ के नीचे झोंपड़ी बना कर रहना शुरू किया,
तब वहां के आदिवासी देश का नाम या प्रधानमंत्री का नाम नहीं जानते थे,
मैं और मेरी पत्नी घर घर जाकर बीमारों को दवाईयां बांटते थे, पढ़ाते थे ,
उन गांवों में पहली बार तिरंगा हमने फहराया,
अट्ठारह साल देश सेवा के बाद ,
आदिवासियों पर सरकारी ज़ुल्मों के खिलाफ और संविधान के पक्ष में जब हम खड़े हुए,
तो भाजपा सरकार ने हमारे आश्रम पर बुलडोज़र चला दिया, हमारे साथियों को जेल में डाल दिया और हमारी हत्या की कोशिश की ,
आज वही भाजपा मुझे देशभक्ति सिखायेगी ?
मैने और मेरी पत्नी ने हज़ारों किलोमीटर की पदयात्रायें इस देश के गाँवों में करी हैं ,
पांव के छालों से खून बहने पर हम भगत सिंह पर जेल में पड़ने वाले कोड़ों की तकलीफ याद करते, और लहुलुहान पावों से चलते रहते थे ,
आज भी राष्ट्रगान सुन कर जोश से मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं ,
क्योंकि राष्ट्रगान मुझे लाखों शहीदों के बलिदानों से मिली ताकत देता है,
लेकिन ये संघी गुण्डे मेरे देशप्रेम के परिक्षक बनेंगे तो मैं पूरी ताकत से इनसे लडूंगा,
और रिटायरमेन्ट के बाद भाजपा सरकार से पद का लालची सुप्रीम कोर्ट का कोई जज अगर संधी गुण्डों को हमारे देशप्रेम का फैसला करने का अधिकार देगा ,
तो मैं उस जज के फैसले की अवमानना करूँगा ,

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