Sunday, July 3, 2016

न्याय की ज़रुरत

आज एक लेख पढ़ रहा था जो अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प की जीत की संभावनाओं के विषय पर था
उसमें कहा गया था कि अज्ञानता के साथ जब ताकत मिल जाती है तो न्याय के लिए सबसे बड़ा खतरा खड़ा हो जाता है
यहाँ आज हम सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय की बात नहीं करेंगे
आज हम अदालतों में मिलने वाले न्याय की बात करेंगे
मैं आपको न्यायशास्त्र के बड़े सिद्धांत नहीं समझाऊँगा
मैं आज आपके साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करूँगा
एक बार मनमोहन सिंह और चिदम्बरम नें अपने एक बयान में कहा था कि माओवादी अदालतों का सहारा ले रहे हैं
यह बात उन्होंने तब कही थी जब हम छत्तीसगढ़ में सोलह आदिवासियों की हत्या का मुकदमा लेकर सुप्रीम कोर्ट में आये थे
इन सोलह आदिवासियों की हत्या सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के सिपाहियों नें करी थी
यानी बंदूक चलाना , बम फोडने को सरकार आपत्तिजनक और अलोकतांत्रिक हरकत माने तो यह बात हमें समझ में आती है
लेकिन किसी का अदालत में न्याय की मांग करना करना कैसे माओवाद हो सकता है ?
या आप मानते हैं कि किसी को आपके खिलाफ़ अदालत में जाने का भी अधिकार नहीं है ?
खैर वो मुकदमा आज सात साल से लटका हुआ है
सुकमा ज़िले के नेंद्रा गाँव की दो लड़कियों को पुलिस वाले उठा कर ले गए थे
एक लड़की के पिता को भी साथ में ले गए थे
लड़की के पिता की गर्दन काट कर पुलिस कैम्प के सामने रख दी गयी
लेकिन दोनों लडकियां कहाँ हैं इसका पता नहीं चल रहा था ?
हमने इन लड़कियों के भाइयों की तरफ से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में हेबियस कार्पस की अर्जी दायर करवाई
इसमें पुलिस द्ववारा ले जाए गए व्यक्ति को अदालत में पेश करने के लिए मांग करी जाती है
जब दोनों लड़कियों के भाइयों नें अदालत में अर्जी लगाईं
तो पुलिस नें दोनों भाइयों का भी अपहरण कर लिया
पुलिस नें इन भाइयों को मार पीट कर अदालत में पेश कर दिया
इन दोनों भाइयों के वकील नें कोर्ट में कहा कि ये दोनों लड़के मेरे मुवक्किल हैं इन्हें कोर्ट में जो कहना होगा ये मेरे मार्फ़त कहेंगे
पुलिस तो इस मामले में आरोपी है क्योंकि लड़कियों को गायब करने का आरोप तो पुलिस पर ही है
और आरोपी प्रार्थी को अदालत में कैसे पेश कर सकता है ?
इस पर जज साहब नें वकील को धमकाया और कहा कि अगर आपने इस तरह अदालत के सामने बात करी तो आपका कैरियर खराब हो सकता है
यानी जज अपनी कुर्सी पर बैठ कर अपहरण करने वाले पुलिस अधिकारियों का बचाव कर रहा था
जज नें उन् लड़कों से लिखवा लिया कि हमारी बहनों के अपहरण के मामले में हमें पुलिस पर शक नहीं है
और जज नें दोनों लड़कियों का पुलिस द्वारा अपहरण का वो मुकदमा तुरंत खारिज कर दिया
सोनी सोरी को थाने में निवस्त्र किया गया
सोनी सोरी को बिजली के झटके दिए गए
इसके बाद सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर भर दिए गए
सोनी सोरी नें बताया कि उसके साथ यह सब पुलिस अधीक्षक अंकित गर्ग की मौजूदगी में और उसके आदेश पर किया गया
अब भारत का कानून क्या कहता है ?
कानून कहता है कि अगर आप पर कोई हमला करता है
तो आप थाने जायेंगे और एक शिकायत दर्ज करवाएंगे
पुलिस आपका डाक्टरी परीक्षण करवायेगी
और आरोपी को गिरफ्तार करके अदालत में पेश करेगी
और अगर पुलिस आपकी शिकायत ना दर्ज करे तो आप अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं
सोनी सोरी नें सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखी कि मेरे ऊपर इस तरह से थाने के भीतर हमला किया गया है
सोनी सोरी का मेडिकल परीक्षण कराया गया
मेडिकल कालेज ने सोनी के शरीर से पत्थर निकाल कर सुप्रीम कोर्ट को भेज दिए
सोनी का आरोप सत्य साबित हो रहा था
सुप्रीम कोर्ट को भारत के कानून का पालन करना चाहिये था
सुप्रीम कोर्ट को पुलिस को आदेश देना चाहिये कि आरोपी पुलिस अधीक्षक के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखी जाय और उसके खिलाफ़ मुकदमा चलाया जाय
लेकिन आज चार साल बाद तक सुप्रीम कोर्ट की हिम्मत नहीं हुई है
कि वह आरोपी पुलिस अधिकारी के खिलाफ़ कार्यवाही करने का आदेश दे सके
और तो और डर कर मारे सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई ही नहीं कर रहा
छत्तीसगढ़ में जेलों में आपको ऐसे आदिवासी मिलेंगे जिहें इन आरोपों में जेल में डाला गया है कि इनके पास से चावल बनाने का बड़ा भगौना मिला
और पुलिस का मानना है कि बड़ा भगौना नक्सलवादियों के लिए खाना बनाने के लिए होता है
हांलाकि आदिवासी जब भी सामूहिक त्यौहार मनाते हैं तब वे लोग एक साथ चावल बनाते हैं
और उनकी अपनी पंचायत के पास बड़े भगौने होते हैं
लेकिन जेलों में तीन तीन साल से आदिवासी पड़े हुए हैं क्योंकि उनके पास से पुलिस को बड़े भगौने मिले
कोई इन आदिवासियों को न्याय नहीं दिला पा रहा है
क्योंकि इन आदिवासियों के लिए लिखने वाले चार पत्रकारों को छत्तीसगढ़ सरकार नें जेल में डाल दिया है
इन आदिवासियों को मुफ्त सहायता देने वाली महिला वकीलों को बस्तर छोड़ कर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया है
आयता नामक एक आदिवासी युवक को पुलिस नें वोटिंग मशीनें लूटने के फर्ज़ी आरोप में जेल में डाला
अदालत नें आयता को निर्दोष माना और उसे रिहा कर दिया
आयता आदिवासियों के लिए आवाज़ उठाता रहा
पुलिस नें दोबारा आयता को पकड़ कर फिर से वोटिंग मशीनें लूटने के फर्ज़ी आरोप में जेल में जेल में डाल दिया
अदालत नें दुबारा निर्दोष आयता को रिहा कर दिया
इसी महीने पुलिस नें तीसरी बार फिर से आयता को पकड़ कर जेल में डाल दिया है
और उस पर वही पुराना आरोप लगाया है कि इसने वोटिंग मशीनें लूटी हैं
यानी एक ही व्यक्ति पर तीन बार वही आरोप
इसी तरह कांकेर जेल में पदमा आठ साल से बंद है
पदमा को कोर्ट नें दो बार रिहा किया है
पहली बार पुलिस नें पदमा को पदमा पत्नी बालकिशन के नाम से जेल में डाला
अदालत नें सन २००९ में पदमा को रिहा करने का आदेश दिया
लेकिन पुलिस नें पदमा को नहीं छोड़ा बल्कि
इस बार पदमा को पदमा पत्नी राजन के नाम से जेल में डाल दिया
अदालत नें दुबारा पदमा को रिहा करने के लिए २०१२ में आदेश दिया
लेकिन पुलिस नें उसे रिहा नहीं किया
इस बार पुलिस नें पदमा को पदमा पत्नी नामालूम गांव नामालूम के नाम से पकड़ कर जेल में डाला हुआ है
लेकिन एक जज नें पुलिस द्वारा इस तरह निर्दोषों को फंसाए जाने पर आपत्ति करी
सुकमा ज़िले में प्रभाकर ग्वाल नामक एक दलित जज नें पुलिस की हरकतों पर आपत्ति करी
निर्दोष आदिवासियों को पुलिस वाले अपनी तरक्की और नगद इनाम के लिए जेलों में डालते हैं
जज प्रभाकर ग्वाल नें इस सब पर आपत्ति करी
इस पर पुलिस वालों नें हाई कोर्ट को इन जज साहब के खिलाफ़ शिकायत भेज दी
हाई कोर्ट नें जज साहब को नौकरी से निकाल दिया
यानी अगर आप पुलिस और सरकार के अन्याय में शामिल होंगे तभी आप जज बने रह सकते हैं
अगर आपनें कानून की किताबों के अनुसार न्याय करने की कोशिश करी तो आपको निकाल कर बाहर कर दिया जाएगा
मेरे पास अन्याय के ढेरों अनुभव हैं
न्याय के लिए लड़ाई की ज़रूरत इन्हीं अनुभवों से पैदा होती है

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