Sunday, November 29, 2015

ज़मीन का मालिक कौन है

आपने एक करोड रूपये के शेयर खरीदे .
एक सप्ताह बाद उसकी कीमत दो करोड हो गयी . तो अब आपके पास दो करोड की खरीद शक्ति जमा हो गयी .
आप इस दो करोड का गेहूं भी खरीद सकते हैं .
अब एक ही हफ्ते में आप दो करोड रूपये के गेहूं के मालिक हो गये .
आप ने कोई श्रम नहीं किया लेकिन आप बैठे बैठे एक हफ्ते में दुगने उत्पाद के मालिक हो जाते हैं . 
दूसरी तरफ मेहनत से गेहूं पैदा करने वाले की खरीद शक्ति कभी नहीं बढ़ती .
तो मेहनत करने वाला नुक्सान में और बैठ कर कमाने वाले मज़े में .
यही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है .
इस पर सवाल उठाना ज़रूरी है .
इसे बदलना भी ज़रूरी है .
लेकिन बिना मेहनत किये मज़े करने वाले लोग इसे बदलने नहीं देंगे .
वो बदलाव की कोशिश करने वाले पर हमला कर देते हैं .
और इनके हमले का विरोध करने वालों को नक्सली और राजद्रोही कह्ते हैं .
यही पूंजीवाद है .
आप अपने बच्चों को इस लिए स्कूल भेजते हैं ताकि ताकि वो शिक्षित होकर पूंजीपति की कम्पनी में नौकरी कर सके और पूँजीवाद के गुण गाये ,
और सारी ज़मीने पूंजीपतियों की मिल्कियत बन जाएँ . याद रखियेगा , एक दिन ये पूंजीपति अपने मुनाफे के लिये नौकरियां कम करते जायेंगे , और आपके पास तब ना खेत बचेगा ना नौकरी , आप गुलाम होंगे ,
और पूंजीपति की कृपा पर जीने के लिये मजबूर होंगे , तब भयंकर भूख फैलेगी , ऐसा इतिहास में कई बार हुआ है जब भयंकर भूख फ़ैली है और लाखों लोग भूख से मर गये , भारत में बंगाल में अकाल से लाखों लोग मारे गये थे , सोमालिया अभी मर रहा है ,
भारत में लाखों लोग भूखे और कुपोषित हैं , इसलिये नहीं क्योंकि हमारे पास गेहूं नहीं है , बल्कि इसलिये कि हमने उनके हाथ से ज़मीने और काम करने के अवसर छीन कर पैसे वालों के हाथों में सौंप दिया है .
ये तो एक ही उदहारण है , आप शेयर की जगह मकान कर लें . एक हफ्ते को एक साल कर लें , क्या फर्क पड़ जायेगा ? बात अभी भी वही है . और इतिहास में कितने ही बिजिनेस दूसरों की सम्पत्ति पर शासन की और हिंसा की मदद से कब्जा करने का ही काम करने को कहा जाता था .
अमेरिका में आदिवासियों की ज़मीनों पर कब्ज़े और उनकी बिक्री का काम क्या था ? बिजिनेस या लूट?
आज भी भारत में आदिवासियों की ज़मीनों पर व्यापारियों द्वारा सरकारी बंदूकों की मदद से लूट क्या है ? व्यापार ? इन के शेयर के रेट तभी बढ़ेंगे जब आदिवासियों की ज़मीनों पर व्यापारियों का कब्ज़ा हो जायेगा .
अब सवाल है कि ज़मीन का मालिक कौन है . व्यापारी , और व्यापारियों की जेब में पड़ी हुई सरकार और उनकी नौकर पुलिस या आदिवासी ?

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