Monday, September 15, 2014

टीवी

जब मेरठ में हमारे पड़ोस के मोहल्ले में टीवी आया . तब मैं दूसरी कक्षा में पढता था . 

मेरठ जैसे छोटे शहर में दूसरी कक्षा को सेकेण्ड क्लास कहने जितना विकास नहीं हुआ था .

 पिताजी का केबिनेट मंत्री का दर्ज़ा था लेकिन उन्होंने सरकारी वेतन नहीं लिया .

 गांधी आश्रम से मिलने वाले तीन सौ रूपये के मानदेय में माँ चार बच्चों को पालती थी . 

 दूसरे मुहल्ले के एक बड़े से घर में जो बनियों का था मैंने अपनी जिंदगी का पहला टीवी देखा था . 

अपने बैठने के लिए बोरी घर से लेकर जानी पड़ती थी . 

ज़्यादा कुछ समझ में नहीं आता था . लेकिन बड़ी बहनों के साथ जाना पड़ता था नहीं तो वो पीटती थीं . 

मैं टीवी देखते हुए अक्सर सो जाता था . और बाद में उंघते और रोते ठुनुकते वापिस आता था . 

मेरे पांचवीं पास करने तक पिताजी का गांधी आश्रम से मतभेद हो गया था . 

आश्रम वालों का कहना था कि जे पी के आन्दोलन का समर्थन कीजिये . 

लेकिन पिताजी और उनके साथियों का कहना था कि जे पी का आन्दोलन सम्पूर्ण क्रन्ति का आन्दोलन नहीं है . यह एक सत्ता को हटा कर दूसरी पार्टी की सत्ता मात्र लाने का आन्दोलन है . 

इसके बाद पिताजी को गांधी आश्रम छोडना पड़ा . परिवार मुज़फ्फर नगर वापिस आ गया .

मुज़फ्फर नगर में एक परिचित जिन्हें हम सत्यवती ताई जी कहते थे जिनके बेटे संतोष शर्मा जाने माने वकील हैं . उनके घर दो किलोमीटर दूर टीवी देखने जाया करते थे .

हम इतवार को आने वाली फीचर फिल्म और बुधवार के चित्रहार का इंतज़ार करते थे . 

बाद में हमारे ताऊ ब्रह्म प्रकाश जी ने भी टीवी खरीद लिया . 

अब तो हमारे मज़े आ गए . 

हम साढ़े पांच बजे ही टीवी शुरू होने से आधे घंटे पहले से ही टीवी खोल कर बैठ जाते थे .

 पहले तो स्क्रीन पर बिंदी बिंदी झिलमिलाती रहती थी . 

फिर स्क्रीन पर पट्टियां दिखाई देने लगती थीं . 

हम खुश हो जाते थे कि अब टीवी शुरू होने वाला है . 

उसके बाद रात ग्यारह बजे तक हम टीवी के आगे बैठे रहते थे .

लास्ट में टीवी का समय पूरा होने के बाद जब बिंदी बिंदी झिलमिलाने लगती थीं तब ही टीवी बंद होता था और हम सोने जाते थे .

जब कभी चुनाव के नतीजे आते थे तब कई फिल्मे दिखाई जाती थीं . तब तो त्यौहार का सा माहौल बन जाता था .

बाद में शनिवार की फिल्म शुरू हुई चित्रहार शुक्रवार को भी आने लगा .

सन बयासी में टीवी रंगीन हो गया . 

फिर हम बड़े होने लगे . टीवी देखना कम होता गया .

अब तो चौबीस घंटे के सैंकडों चैनल हैं लेकिन अब मेरे घर में टीवी है ही नहीं . 

टीवी का शौक़ीन वो बच्चा अब कहीं गुम हो गया है शायद .

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