Thursday, October 17, 2013

घोड़े समेत घर के तीन लोग



कल बकरा ईद पर हम मुसलमानों द्वारा बकरे काटे जाने को क्रूरता बता रहे थे।  हम अपने धर्म को बड़ा सहिष्णु और अहिंसक बता रहे हैं। 

लेकिन ज़रा इस घटना के प्रकाश में अपनी दयालुता को फिर से परखिये। 

बारो पचास साल की है।  गाँव का नाम लिसाढ़ , ज़िला मुज़फ्फर नगर। बारो ने मुझे बताया की मेरे परिवार के तीन लोगों को मार दिया।  एक मेरी सास जिसका नाम छोटी था और उसकी उम्र नब्बे साल थी। दूसरा मेरा जेठ था जिसका नाम हकीमू और उम्र सत्तर साल थी। और तीसरा मेरा घोडा था जिसका नाम धौला था। 

बारो की सास और जेठ को तलवार से मार कर घोडा बुग्गी  पर डाल कर जला दिया गया । घोड़े को छुरा मार दिया वो वहीं बंधे बंधे मर गया।  फिर घर में आग लगा दी गयी।  

मैं ये सब सुनते हुए सोच रहा था कि मुसलमान तो खाने के लिए जानवरों को मारते हैं लेकिन बारो के घोड़े को तो मारने वालों ने खाया भी नहीं। अगर खाना नहीं था फिर घोड़े को क्यों मारा ?

लेकिन हमें बताया जा रहा है कि यही धर्म है।  इस बेदिमाग हिंसा के सरदार को भारत के हिन्दू अपना अगला प्रधानमंत्री बनाने को आतुर हैं। 

मुझे पता है कि इस पागलपन और हिंसा के पक्ष में खड़े होने के लिए मुझे कितना पागल बनना पड़ेगा। 

लेकिन अगर मैं अपने दिमाग का इस्तेमाल करता हूँ तो इस पागलपन के खिलाफ आवाज़ उठाने के अलावा मेरे सामने कोई रास्ता नहीं है। 
 

1 comment:

  1. अभी कहीं पढ़ा कि परिवार दरबदर हो गया और उनके घोड़े को अंधा कर दिया आतताइयों ने .किसी जानवर पर इस तरह की हिंसा किस धर्म में लिखी है .मारना है तो जान से ही मार दो .सहिष्णुता का पथ क्या ये लोग पढ़ पाएंगे ??

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