Saturday, February 2, 2013

एक नास्तिक पूरी तरह धार्मिक हो सकता है



किसी  भी पदार्थ जीव अथवा व्यक्ति का पृकृति द्वारा तय किया गया गुण उसका धर्म कहलाता है 

जैसे आग का धर्म जलाना है पानी का धर्म ठंडक देना है .

इसी तरह इंसान का एक प्राकृतिक धर्म है .जैसे स्वयं स्वस्थ रहना और प्रकृति के साथ सहयोगी भाव से रहना .

क्योंकि व्यक्ति समाज में रहता है इसलिये उसका एक सामाजिक धर्म भी है .जैसे समाज में सब को सामान माननाकिसी के प्रति हिंसा ना करनाबाँट कर जीनादूसरों का ध्यान रखना .

धर्म कभी भी हिन्दू या मुसलमान नहीं हो सकता .

धर्म का सम्बन्ध ईश्वर से बिल्कुल भी नहीं है .

एक नास्तिक पूरी तरह धार्मिक हो सकता है .

अलग नाम से बनाये गये ये संगठन असल में तो सम्प्रदाय है जैसे हिन्दू सम्प्रदाय मुस्लिम सम्प्रदाय ईसाई सम्प्रदाय . सिख सम्प्रदाय आदि 

सम्प्रदायों के निर्माण का पहला आधार महत्वहीन कर्मकांड होते हैं जैसे ईश्वर की उपासना का तरीका उदहारण के लिये नमाज़ पढ़ना या पूजा करना दाढ़ी रखना या चोटी रखना . टोपी लगाना या जनेऊ पहनना आदि .

सम्प्रदायों के अलग अलग होने का दूसरा आधार होता है इन सम्प्रदायों के अलग अलग दर्शन जैसे दुनिया कैसे बनी मरने के बाद क्या होता है ईश्वर का रूप कैसा है आदि आदि .

अलग अलग सम्प्रदायों के अलग अलग दर्शन और कर्मकांड इसलिये एक दूसरे से अलग हैं क्योंकि यह सभी धरती के अलग अलग हिस्से में पैदा हुए .

इन विभिन्न दर्शनों और कर्मकांडों के निर्माण के समय लोगों के पास दुनिया के दूसरे हिस्सों में प्रचलित दर्शनों और कर्मकांडों की बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती थी .

तब विज्ञान भी इतना विकसित नहीं था कि सृष्टि की उत्पत्ति जीवन , मृत्यु जैसी घटनाओं की असलियत को समझा जा सके .

लेकिन आज विज्ञान के कारण विचार बहुत शीघ्रता से एक स्थान से दूसरी जगह पहुँच रहे हैं .

अब हमारे पास सच्चाई को जानने के वैज्ञानिक भी तरीके मौजूद हैं .

अब पुराने ज़माने में कही गई बातों को मानना उचित नहीं है .

अब सदियों पुराने बेकार के कर्मकांडों को मानना व्यर्थ है .

अब झगड़ा पैदा करने वाली हर बात को छोड़ देना चाहिये .

आज के मनुष्य समाज की बुरी हालत के लिये ज़िम्मेदार आर्थिक राजनैतिक और सामाजिक हालत को सब को मिलजुल कर बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिये . 

यही है नया धर्म .

असली धर्म .





1 comment:

  1. kash esi soch sab ki hoti //////mujhe aapke vicharo sahmat hu me har kisi ki bat kat deta hu par ab tak jitna aapko padha mene mujhe ek bhi bat galat nhi lagi aapki ....

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