Tuesday, January 25, 2011

नहीं , इस आदिवासी लडकी को कोई नहीं बचा सकता ! हिमांशु कुमार

पिछले दिनों मैंने दंतेवाडा जिले की एक आदिवासी लडकी सोनी सोरी के मुश्किल हालात पर एक लेख लिखा था.
जिसमें उसके भांजे लिंगा कोडोपी को दिल्ली से वापिस बुला कर पुलिस के हाथों में सौंप देने के लिए वहां का एस एस पी कल्लूरी इस लडकी से सौदेबाजी कर रहा है. पहले तो उसने धमकी दी कि अगर इस लडकी सोनी सोरी ने अपने भांजे लिंगा कोडोपी को दिल्ली से लाकर पुलिस को नहीं सौंपा तो पुलिस इस लडकी की ज़िंदगी बर्बाद कर देगी. इसके बाद कल्लूरी नें अपनी धमकी पर अमल करते हुए करते हुए इस लडकी के पति को जेल में डाल दिया तथा इनकी जीप को ज़प्त कर लिया और इस लडकी को भी नक्सलियों के साथ मिल कर थाने पर और एक कांग्रेसी नेता के घर पर हमला करने के दो मामलों में फंसा दिया और इसके खिलाफ वारंट जारी कर दिया. इसके बाद इस लडकी ने मुझसे मदद करने की गुहार की. लेकिन आखिर इस देश में दंतेवाडा के एस एस पी कल्लूरी से ऊपर तो कोई है नहीं. इसलिए मैं इस लडकी की कोई मदद नहीं नहीं कर पाया. हांलाकि मैं मीडिया, एक्टिविस्टों और नेताओं से इस लडकी की मदद के लिए मिला मदद के नाम पर सबने हाथ खड़े कर दिए. इसलिए मैं इस लडकी की कोई मदद नहीं कर पाया. अंत में मैंने इस उम्मीद में एक लेख लिखा की शायद इस लडकी की ज़िंदगी को बर्बाद होने से कोई तो बचाएगा. मुझे उम्मीद थी कि आखिर इस विशाल और महान देश में कोई न कोई तो उसकी मदद करेगा.


अभी बिनायक सेन को उम्रकैद की सज़ा मिलने के बाद टेलीवीज़न पर ऐसे बहुत से बहादुर लोग बोलते हुए दीखते हैं जो अदालत, सरकार, और लोकतंत्र की तारीफ़ में बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं . और सफलतापूर्वक ये सिध्ध कर रहे हैं की हम जैसे लोगों को न्याय व्यवस्था पर कोई सवाल नहीं उठाना चाहिए क्योंकी उससे देश कमज़ोर होता है. तो देश की मजबूती की रक्षा की खातिर मैंने सब बातों को स्वीकार कर लिया और उनकी बातें सुन कर मुझे भी खुद के विचारों पर शक और इस देश की व्यवस्था पर विश्वास सा होने लगा था .

लेकिन फिर कल एक फोन ने मेरे सारे विश्वास को डगमगा दिया. दंतेवाड़ा से फिर उसी आदिवासी लडकी ने मुझे बताया की सर, दंतेवाडा के एस एस पी कल्लूरी नें फिर दो नयी नक्सली वारदातों में फिर से उसका नाम जोड़ दिया है और अदालत में उसके खिलाफ चालान भी पेश कर दिया है. वो लडकी रो रही थी कि सर मैं तो रोज़ अपने स्कूल में पढ़ाती हूँ, वहाँ मेरी हाजिरी लगी हुयी है, में जेल में अपने पति से मिलने भी जाती हूँ और जेल के रजिस्टर में दस्तखत भी करती हूँ . लेकिन फिर भी एस एस पी कल्लूरी ने मुझे फरार घोषित कर दिया है और मुझे मारने की फिराक में है. फोन के उस तरफ वो लडकी रोती जा रही थी और फोन के इस तरफ मैं गुस्से , बेबसी, और असमंजस की हालत में उसका रोना सुनता जा रहा था.

लाखों लोग इस देश की आजादी के लिए लड़े थे मेरे पिता भी लड़े थे. क्या यही दिन देखने के लिए उन सारे लोगों ने कुर्बानी दी थी ? क्या भगत सिंह इस तरह के देश के लिए शहीद हुए थे? कम से कम मुझे कोई ये तो बता दे की मुझे क्या करना चाहिए ? आदिवासी होता तो बन्दूक उठा सकता था. पर सबने गांधीवादी कह कह कर मुझे इतना इज्ज़तदार बना दिया है की अब मैं हर अन्याय पर बस इन्टरनेट पर एक लेख लिखता हूँ और सोच लेता हूँ की काफी देश सेवा हो गयी. अब तो मीडिया वालों ने मेरे फोन भी उठाने बंद कर दिए हैं.

क्या कोई मेरी बात सुन रहा है? हेल्लो? मीडिया, सरकार, न्याय पालिका? है कोई गरीब जनता,आदिवासियों की बात सुनने वाला ? क्या कोई बचा है ? कम से कम इस लोकतंत्र को बचाने की आखिरी कोशिश तो कर लो ,
कोई है जो इस बेबस आदिवासी लडकी को बचा सकता है?

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